Monday, April 29, 2019

हनुमान आरती

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अनजानी पुत्र महाबलदायी। संतन के प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।।
पैठी पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।।
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

Thursday, April 25, 2019

श्री हनुमत् स्तवन

।। श्री हनुमत् स्तवन ।।

।। सोरठा ।।
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन ।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥

गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् ।
रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥

अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् ।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ॥

महाव्याकरणाम्भोधिमन्थमानसमन्दरम् ।
कवयन्तं रामकीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥

उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोकवह्निं जनकात्मजायाः ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥

आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् ।
पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ॥

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ।
बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥

Tuesday, April 23, 2019

संकटमोचन हनुमान अष्टक

छंद :

बाल समय रवि भक्षि लियो तब तीनहुं लोक भयो अंधियारों | 
ताहि सो त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो || 
देवन आनि करी विनती तब छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो | 
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो || को – १ || 

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो | 
चौंकि महामुनि शाप दियो तब चाहिए कौन बिचार बिचारो || 
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के शोक निवारो || को – २ ||

अंगद के संग लेन गए सिय खोज कपीश यह बैन उचारो | 
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो || 
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब लाए सिया-सुधि प्राण उबारो || को – ३ || 

रावण त्रास दई सिय को तब राक्षसि सो कही सोक निवारो | 
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाए महा रजनीचर मारो || 
चाहत सीय असोक सों आगिसु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो || को ४ || 

बान लग्यो उर लछिमन के तब प्राण तजे सुत रावन मारो | 
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो || 
आनि संजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो || को – ५ || 

रावन युद्ध अजान कियो तब नाग कि फांस सबै सिर डारो | 
श्री रघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो || 
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो || को – ६ || 

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो | 
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो || 
जाये सहाए भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो || को – ७ || 

काज किये बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो | 
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसो नहिं जात है टारो || 
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होए हमारो || को – ८ || 

दोहा :

लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I 
बज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II 

// इति //

श्री बजरंग बाण

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान। 
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥ 

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ 
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥ 
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥ 
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥ 
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥ 
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥ 
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥ 
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥ 
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥ 
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥ 
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥ 
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥ 
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥ 
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥ 
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥ 
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥ 
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥ 
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥ 
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥ 
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥ 
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥ 
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥ 
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥ 
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥ 
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥ 
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥ 
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥ 
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥ 
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥ 
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥ 
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥ 
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥ 

दोहा :


उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान। 
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

// इति //

हनुमान चालीसा

दोहा :


श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि / 
बरनऊँ रधुबर बिमल जासु , जो दायकु फल चारि // 
बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौ पवन कुमार / 
बल बुद्धि विद्द्या देहु मोहिं , हरहु कलेस बिकार // 

चौपाई :


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर / जय कपीस तिहुँ लोक उजागर // 
राम दूत अतुलित बल धामा / अंजनि पुत्र पवनसुत नामा // 
महाबीर बिक्रम बजरंगी / कुमति निवार सुमति के संगी // 
कंचन बरन बिराज सुबेसा / कानन कुंडल कुंचित केसा // 
हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै / काँधे मूँज जनेऊ साजै // 
संकर सुवन केसरीनंदन / तेज प्रताप महा जग बंदन // 
बिद्यावान गुनी अति चातुर / राम काज करिबे को आतुर // 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया / राम लषन सीता मन बसिया // 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा /बिकट रूप धरि लंक जरावा // 
भीम रूप धरि असुर सँहारे / रामचन्द्र के काज सँवारे // 
लाय सजीवन लखन जियाये /श्रीरधुबीर हरषि उर लाये // 
रधुपति कीन्ही बहुत बड़ाई / तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई // 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं / अस कहिं श्रीपति कंठ लगावैं // 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा /नारद सारद सहित अहीसा // 
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते / कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते // 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा / राम मिलाय राज पद दीन्हा // 
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना / लंकेस्वर भए सब जग जाना // 
जग सहस्त्र जोजन पर भानू / लील्यो ताहि मधुर फल जानू // 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं / जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं // 
दुर्गम काज जगत के जेते / सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते // 
राम दुआरे तुम रखवारे / होत न आज्ञा बिनु पैसारे // 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना /तुम रच्छक काहू को डर ना // 
आपन तेज सम्हारो आपै / तीनों लोक हाँक तें कांपै // 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै / महाबीर जब नाम सुनावै // 
नासै रोग हरै सब पीरा /जपत निरन्तर हनुमत बीरा // 
संकट तें हनुमान छुड़ावै / मन क्रम बचन ध्यान जो लावै // 
सब पर राम तपस्वी राजा / तिन के काज सकल तुम साजा // 
और मनोरथ जो कोइ लावै / सोइ अमित जीवन फल पावै // 
चारों जग परताप तुम्हारा / है परसिद्ध जगत उजियारा // 
साधु संत के तुम रखवारे / असुर निकंदन राम दुलारे // 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता / अस बर दीन जानकी माता // 
राम रसायन तुम्हरे पासा / सदा रहो रधुपति के दासा // 
तुम्हरे भजन राम को पावै / जनम जनम के दुख बिसरावै // 
अंत काल रधुबर पुर जाई / जहाँ जन्म हरी-भक्त कहाई // 
और देवता चित न धरई / हनुमत सेइ सर्ब सुख करई // 
संकट कटै मिटै सब पीरा / जो सुमिरै हनुमत बलबीरा // 
जै जै जै हनुमान गोसाई / कृपा करहु गुरु देव की नाई // 
जो सत बार पाठ कर कोई / छुटहि बंदि महा सुख होई // 
जो यह पढ़ै हुनमान चालीसा / होय सिद्धि साखी गौरीसा // 
तुलसीदास सदा हरि चेरा / कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा // 
दोहा :


पवनतनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप /
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहु सुर भूप // 

// इति //