Tuesday, April 23, 2019

हनुमान चालीसा

दोहा :


श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि / 
बरनऊँ रधुबर बिमल जासु , जो दायकु फल चारि // 
बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौ पवन कुमार / 
बल बुद्धि विद्द्या देहु मोहिं , हरहु कलेस बिकार // 

चौपाई :


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर / जय कपीस तिहुँ लोक उजागर // 
राम दूत अतुलित बल धामा / अंजनि पुत्र पवनसुत नामा // 
महाबीर बिक्रम बजरंगी / कुमति निवार सुमति के संगी // 
कंचन बरन बिराज सुबेसा / कानन कुंडल कुंचित केसा // 
हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै / काँधे मूँज जनेऊ साजै // 
संकर सुवन केसरीनंदन / तेज प्रताप महा जग बंदन // 
बिद्यावान गुनी अति चातुर / राम काज करिबे को आतुर // 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया / राम लषन सीता मन बसिया // 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा /बिकट रूप धरि लंक जरावा // 
भीम रूप धरि असुर सँहारे / रामचन्द्र के काज सँवारे // 
लाय सजीवन लखन जियाये /श्रीरधुबीर हरषि उर लाये // 
रधुपति कीन्ही बहुत बड़ाई / तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई // 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं / अस कहिं श्रीपति कंठ लगावैं // 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा /नारद सारद सहित अहीसा // 
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते / कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते // 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा / राम मिलाय राज पद दीन्हा // 
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना / लंकेस्वर भए सब जग जाना // 
जग सहस्त्र जोजन पर भानू / लील्यो ताहि मधुर फल जानू // 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं / जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं // 
दुर्गम काज जगत के जेते / सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते // 
राम दुआरे तुम रखवारे / होत न आज्ञा बिनु पैसारे // 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना /तुम रच्छक काहू को डर ना // 
आपन तेज सम्हारो आपै / तीनों लोक हाँक तें कांपै // 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै / महाबीर जब नाम सुनावै // 
नासै रोग हरै सब पीरा /जपत निरन्तर हनुमत बीरा // 
संकट तें हनुमान छुड़ावै / मन क्रम बचन ध्यान जो लावै // 
सब पर राम तपस्वी राजा / तिन के काज सकल तुम साजा // 
और मनोरथ जो कोइ लावै / सोइ अमित जीवन फल पावै // 
चारों जग परताप तुम्हारा / है परसिद्ध जगत उजियारा // 
साधु संत के तुम रखवारे / असुर निकंदन राम दुलारे // 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता / अस बर दीन जानकी माता // 
राम रसायन तुम्हरे पासा / सदा रहो रधुपति के दासा // 
तुम्हरे भजन राम को पावै / जनम जनम के दुख बिसरावै // 
अंत काल रधुबर पुर जाई / जहाँ जन्म हरी-भक्त कहाई // 
और देवता चित न धरई / हनुमत सेइ सर्ब सुख करई // 
संकट कटै मिटै सब पीरा / जो सुमिरै हनुमत बलबीरा // 
जै जै जै हनुमान गोसाई / कृपा करहु गुरु देव की नाई // 
जो सत बार पाठ कर कोई / छुटहि बंदि महा सुख होई // 
जो यह पढ़ै हुनमान चालीसा / होय सिद्धि साखी गौरीसा // 
तुलसीदास सदा हरि चेरा / कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा // 
दोहा :


पवनतनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप /
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहु सुर भूप // 

// इति //








No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.